Tuesday, August 23, 2011

विरोध की मशाल थामे मित्रों से इस आन्दोलन को ले कर बनी मेरी समझ पर मार्गदर्शन ज़रूर चाहूँगा.

फेसबुकी प्रभाव कहिये या चिंतन प्रक्रिया का सुस्त होते जाना ........ अन्ना के नेतृत्व में चलने वाले आन्दोलन को मेरे समर्थन का तगड़ा बौद्धिक कारण नहीं दे पा रहा हूँ..... 
विरोध की मशाल थामे मित्रों से इस आन्दोलन को ले कर बनी मेरी समझ पर मार्गदर्शन ज़रूर चाहूँगा... शुरुआत के लिए निम्न बिन्दुओं पर.....

१. फुर्सत के क्षणों में भ्रष्टाचार पर चिंता ज़ाहिर कर इतिश्री कर लेने वाली शहरी मध्यमवर्गीय ज़नता भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने को सड़क पर उतरी... क्या देश के लोकशाही के लिए यह अच्छा लक्षण नहीं है ?

२. अभी तक देश और समाज के प्रति निरपेक्ष बने रहने के कारण उचित ही आलोचना का पात्र रहा शिक्षित युवा डिस्को,पब,इंटरनेट - मोबाईल चैट से परे सामाजिक और अनिवार्यतः शासन के मुद्दे पर  अपनी राय बना रहा है.. बहस कर रहा है...प्रदर्शन कर रहा है.. देश की जनतांत्रिक प्रणाली के लिए क्या यह शुभ संकेत नहीं ?

३. चुनाव के चुनाव  प्रतिनिधियों का चेहरा देखने वाली जनता आज अपने सांसद से सवाल कर रही है.. अपनी बात समझा रही है.. अपनी मांगे रख रही है.. केवल निजी फायदे के लिए एम्.पी, एम्.एल.ए. से पास जाने वाला आम आदमी से लेकर कभी भी उनके पास न जाने वाले बुद्धिजीवी तबका अपने सांसद से भ्रष्टाचार के खिलाफ एक कड़ा और प्रभावी कानून मांग रहा है. विधायिका सदस्यों से कार्यपालिका के कामों जैसे की सड़क या हैण्ड पम्प की मांग से परे कानून बनाने को जिम्मेदार लोगों से कानून की मांग करना क्या संसदीय लोकतंत्र की परिपक्वता का परिचायक नहीं है ?  

४. आपको याद है पिछली बार कब कोई आन्दोलन बिना बस के सीसे चकनाचूर किए संचालित हुआ था ? स्व संयम और अहिंसा का जो पाठ यह देश इस आन्दोलन में पढ़ रहा है, क्या वह भावी किसी भी आन्दोलन का आदर्श नहीं होना चाहिए ? जब सब मान बैठे हों कि बहरी सरकारें केवल तोड़ फोड़, आगजनी या बम्ब बारूद कि भाषा समझती हों तब एक आन्दोलन निष्ठां, मेहनत सांगठनिक कौशल और आहिंसा के रास्ते सरकार को पानी पिला देता है. अन्य आवश्यक मुद्दों पर संघर्ष करने वाले समूहों और व्यक्तिओं के लिए क्या यह नज़ीर नहीं है ? यह आन्दोलन क्या अपनी प्रबंधकीय क्षमता और आदर्शों के अद्भुत मेल के लिए अकादमिक संसथानों में पढाये जाने योग्य नहीं है?

५. भ्रष्टाचार के खिलाफ और लोकपाल के समर्थन में चलने वाले आन्दोलन को मिला जन समर्थन दलितों , आदिवासियों और अन्य वंचितों को लेकर चलने वाले आन्दोलनों को कमज़ोर तो नहीं करता..बल्कि उनकी सफलता का भी दरवाज़ा खोलने की कोसिस ही करता है.. क्या यह महज़ इर्ष्या है या कई सम्माननीय लोग सतासीन दल के हांथो में खेल रहे है? 

५. यह सही है की केवल कानून कुछ नहीं कर सकता है.. समाज जैसा होता है सरकार वैसी ही होती है.. पर व्यवस्था में सुधार संभव है या देश के हर नागरिक को पूर्ण रूप से नैतिक बना देना. और क्या समाज के पूरी तरह से नैतिक होने के इंतज़ार में हम बैठे रह सकते हैं ?  और क्या यह नैतिक समाज का  यूटोपिया राज्य की 'आधुनिक' व्यवस्था को खारिज नहीं कर देगा ? 

६. राष्ट्रीय अस्मिता के चिन्हों को समाज को पुनः लौटा रहा है यह आन्दोलन.. गांधीवादी कहा जाना गाली नहीं है .. बंदेमातरम को दक्क्षिणपंथीओं  के हाथ से तो इन्कलाब जिंदाबाद को वामपंथीओं से वापस ले राष्ट्र को सौंप रहा है यह आन्दोलन...  क्या अपने राष्ट्र प्रतीकों को वापस क्लेम करना आन्दोलन कि प्रतिगामिता है ?

मुझे लगता नहीं है की सरकारी लोकपाल बिल का खोखलापन किसी से छिपा है.. न ही इस बात को रेखांकित करने की ज़रूरत है की असाधारण समय असाधारण प्रयासों और विकल्पों की मांग करता है.......

Thursday, August 18, 2011

MAY THE VIRUS CATCH WHOLE THE NATION.


for last two decades the society has changed its value system to a significant extent. one of the values in this regard has been 'honesty'. from tolerating the corruption, it began to facilitate and then celebrate the corrupt practices. ill gotten wealth brings not only the comforts money can buy but also the place in social strata without any admonishment from moral order. there is a chance honesty, once regarded an universal value loosing the status of a preferred value itself. what to say of practices prevalent.

the current movement is a first in Indian history where non political figures are heading a campaign demanding change in style of governance and creation of effective deterrence against corruption. the support this movement has generated itself is an achievement.. this support means that honesty is being re established as a value in society..WHEN HONEST ARE SEEN TO BE INSANE, this sensitization is in itself a great achievement. 

HISTORY IS WITNESS TO CHANGES. ONCE MOST CORRUPT SOCIETIES AND/OR GOVERNANCE MECHANISMS HAVE CHANGED AND VICE-VERSE.. WE SHALL ALSO...... MAY THE VIRUS CATCH WHOLE THE NATION.

Monday, August 15, 2011

जब उँगलियों में दर्द हो ......  पैर कुल्हाड़ी पर मारो.... पेट दर्द पर......... सर पर चोट ......... एक दर्द का इलाज बड़ा दर्द होता है......ज़िन्दगी ऐसे ही इलाज करती है.....

Friday, August 5, 2011

कई सालों के अनुभव से पाया है कि हिंदुस्तान में व्यवसायगत नैतिकता, व्यवसाय कि सामाजिक प्रतिष्ठा के ब्युत्क्रमानुपाती है. सामन्यतया ब्यूरोक्रेट < प्रोफ़ेसर < डाक्टर < इंजिनीअर <........ सबसे निचली पायदान पर आते हैं. सबसे कठिनाई से नौकरी/ व्यवसाय पाए लोग सबसे निक्रिस्ट कोटि कि प्रेफेसनल एथिक्स रखते है.. बिना बारी देखने के लिए डाक्टर फ़ीस में दो सौ जोड़ कर देने के लिए कहता है. और आज पानी से भरी सड़क पार करवा देने के लिए मैंने रिक्शा चालक को जब उसकी फ़ीस देनी चाही तो उसने हंस के कहा इसका का क्या लेना